मौसम बदल गया
रखा बक्स में नानी मां ने,
नाना जी का शाल।
जब से फटने लगे
चटाचट,
तालाबों के गाल।
उठीं नींद से, बंद
खिड़कियां,
देखें आंखें फाड़।
गांव गली में लहराते हैं,
ज्वालाओं के झाड़।
आवारा सी घूम रही लू,
आंधी लेकर साथ,
गर्म सलाखों से लगते हैं,
अब किरणों के हाथ।
लस्सी, शरबत, आम मतीरे
लेकर आती शाम,
पंखे, कूलर चलते फिर भी,
गरमी पूछे नाम।
अब्दुल मलिक खान
इतवार की सुबह
बंदर जी इतवार की सुबह,
रहे देर तक जब सोते,
बोली बंदरिया-उठ जाओ,
लगाते रहो न सपनों में गोते।
बंदर बोले-आज है छुट्टी,
ज़रा चश्मा-अखबार तो लाओ,
जब तक देखूं मैं सुर्खियां,
बढिय़ा-सी इक चाय बनाओ।